गरमी की छुट्टी
(1)
थपेड़े लू के
थपथपाती गरमी
थम जाती है हवा
करने को गुफ्त-गु
बुढ़ी माँ से
झुर्रियों के कोटर में
थिरके दो पुलकित नयन
अर्थपूर्ण, गोल चमकदार
लोर से सराबोर!
निहारते शून्य को
(2)
उठती गिरती लकीरें
मनभावन कल्पना की
सिसियाती हवा
माँ के आँचल में डोल
सोहर-से-स्वर
थरथराते होठ
काँपते कपोल
अर्ध्य-सामग्री सी अस्थियाँ
कलाई की, बन
वज्र सा कठोर....
(3)
बुहार रही हैं
पथ उम्मीदों का
पसीने से धुली
आँखों में चमकती
धुँधली, गोधुली रोशनी
उभरती तैरती
आकृतियाँ,
बेटे-बहू-पोते
एक एक को सहेजती
बाँधती वैधव्य के आँचल में
(4)
कोर के गाँठ खोलती
फटी साड़ी की
निकालती
खोलती पसारती
सिकुड़ी अधगली
स्याह चिट्ठी
डरते-डरते,
न जाने
कब सरक जाये
मुआ, ये गरमी की छुट्टी!