Monday 1 August 2016

पानी पानी


      (1)
धनकती धरती को देख
फटा कलेजा बादल का
बदमिजाज हवायें मचायें धमाचौकड़ी
करे शोर गाये मल्हार
घटाओं की गीदड़ भभकी
भागा सूरज
बिजली चमकी
दामिनी दम भर
घनश्याम से उलझी
औंधे मुँह जमीन पर गिरी


   (2)
भींगी पत्तियाँ, गीले पेड़
कानन में बदरी करियाई
दरिया उड़ेला
अकुलाये आसमान ने
नदी का पेट फूला
मदन मगन पवन मचाये उधम
खुसुर-फुसुर सोंसियाता सीटी बजाता
लताओं को सहलाता
लतायें इठलायी शरमायी


      (3)
नटखट टहनियाँ उलझी
पत्तियाँ लरजीं
गिलहरियों की बंद हुइ गश्ती
ढ़ाबुस बेंगो पर छायी मस्ती
बरसात के वेग की आहट
रुक रुक आती
चिरई की चहचहाहट
झूम के नाची बरखा रानी

धरती गीली नंगी

शरम से हुई पानी पानी

1 comment:

  1. Roli Abhilasha (अभिलाषा): मनखुश बातें मन को छू गईं
    हवा रही बौराए
    बादल छींटे छोड़े अपनी
    पानी धूल उड़ाए।।
    👍👍👍👌👌👌👌
    बहुत सुंदर पंक्तियां।
    Vishwa Mohan: वाह! अत्यंत आभार!!!

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