Tuesday 26 July 2016

बाबूजी




कल्पना की भीत में
शब्दों से परे
आज भी बाबूजी दिखते
बच्चों को बनाने की ज़िद में
वैसे ही अड़े खड़े।



धागों से बँधे चश्मे
दोनों कानों को
यूँ पकड़े जैसे
तक़दीर को खूँटों में
जकड़ रखा हो वक़्त ने



बुढ़ायी, सिकुची, केंचुआयी
ढ़िबरी सी टिमटिमाती
छोटी आँखें, ऐनक के पार
पाती विशाल विस्तार, यूँ
ज्यों, उनके सपने साकार!



कफ और बलगम नतमस्तक!
अरमान तक घोंटने में माहिर  
जेब की छेद में अँगुली नचाते
पकता मोतियाबिन्द, और पकाते,
सपनो के धुँधले होने तक


पाई-पाई का हिसाब
टीन की पेटी को देते
उखड़े हैन्डिल को फ़ँसा
मोटे ताले को लटका
चाभी जनेऊ को पहनाते


मिरजई का पेबन्द
और ताकती फटी गंजी
अँगौछे के ओहार में
यूँ ढ़क जाती जैसे दीवाली की रात
मन का मौन ,बिरहा की तान में.



कफ, ताला, बलगम, जेब, अँगोछा
पेटी, ,जनेऊ, चाभी, मोतियाबिन्द
मिरजई, बिरहे की तान- सब संजोते
बाबूजी आँखों में, रोशन अरमान
बच्चों के बनने का सपना!

17 comments:

  1. anchal pandey: भाव विभोर करती हृदयस्पर्शी रचना आदरणीय सर
    Vishwa Mohan: अत्यन्त आभार!!

    ReplyDelete
  2. बेहद भावपूर्ण हृदयस्पर्शी सृजन..सराहनीय शब्द विन्यास बहुत सुंदर रचना विश्वमोहन जी👌👌

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी, बहुत आभार, श्वेता जी!

      Delete
  3. बहुत सुन्दर विश्वमोहन जी. मेरे दिल की बात आपने कह दी.
    माँ के प्यार, उसके त्याग और बलिदान के आगे पिता की तपस्या का, उसकी कर्त्तव्य-परायणता का और उसके जुझारूपन का, बहुत कम ज़िक्र होता है.
    बच्चों के लिए माँ जो सपने देखती है, उनमें व्यावहारिकता कम होती है किन्तु पिता अपने बच्चों के लिए खुद सपने कम देखता है लेकिन वह अपने बच्चों के सपनों को पूरा करने की हर संभव कोशिश करता है.

    ReplyDelete
  4. बहुत सुंदर संवेदनाओं से भरपूर सत्य भाव पूर्ण सृजन ।

    ReplyDelete
  5. बाबूजी के बहाने से हर उस संघर्षशील पिता का मर्मस्पर्शी काव्य चित्र जिन्होंने कम साधनों में भी ,अपनी संतान को सफलता के शिखर तक पहुँचाने के लिए , तन और मन से अपना अतुलनीय योगदान दिया है |अपनी दैहिक विसंगतियों को दरकिनार कर , सुघड़ आर्थिक प्रबंधन के साथ बच्चों की तरक्की की निस्वार्थ आकांक्षा संजोये ऐसे पिताओं को कोटि नमन | सादर

    ReplyDelete
  6. बाबू जिकी सच्ची तस्वीर उकेरी है।

    ReplyDelete
  7. समस्त पितृ सत्ता को सादर नमन 🙏🙏

    ReplyDelete
  8. मिरजई का पेबन्द
    और ताकती फटी गंजी
    अँगौछे के ओहार में
    यूँ ढ़क जाती जैसे दीवाली की रात
    मन का मौन ,बिरहा की तान में.
    बहुत ही हृदयस्पर्शी सृजन बाबू जी पर...तंगहाली और अपनी संतानों के सुन्दर भविष्य का सपना पालते जुझारू बाबू जी की छवि उकेरती बहुत ही लाजवाब कृति।
    🙏🙏🙏🙏

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी, आपके अनुपम आशीष का आभार!!!

      Delete