Tuesday 26 July 2016

गरमी की छुट्टी

गरमी की छुट्टी
   (1)

थपेड़े लू के
थपथपाती गरमी
थम जाती है हवा
करने को गुफ्त-गु
बुढ़ी माँ से
झुर्रियों के कोटर में
थिरके दो पुलकित नयन
अर्थपूर्ण, गोल चमकदार
लोर से सराबोर!
निहारते शून्य को

    (2)

उठती गिरती लकीरें
मनभावन कल्पना की
सिसियाती हवा
माँ के आँचल में डोल
सोहर-से-स्वर
थरथराते होठ
काँपते कपोल
अर्ध्य-सामग्री सी अस्थियाँ
कलाई की, बन
वज्र सा कठोर....

  (3)

बुहार रही हैं
पथ उम्मीदों का
पसीने से धुली
आँखों में चमकती
धुँधली, गोधुली रोशनी 
उभरती तैरती
आकृतियाँ,
बेटे-बहू-पोते
एक एक को सहेजती
बाँधती वैधव्य के आँचल में

    (4)
कोर के गाँठ खोलती
फटी साड़ी की
निकालती
खोलती पसारती
सिकुड़ी अधगली
स्याह चिट्ठी
डरते-डरते,
न  जाने
कब सरक जाये

मुआ, ये गरमी की छुट्टी! 

3 comments:

  1. NITU THAKUR: बहुत खूबसूरत रचना।बहुत खूब
    नमन आप की लेखनी को।
    Vishwa Mohan: +NITU THAKUR बहुत आभार आपका!!!

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  2. Indira Gupta's profile photo
    Indira Gupta
    +1
    👌👌👌अति सुंदर सहज भाव शब्दों का लेखन पर अद्भुत भावों का सम्प्रेषण
    नमन कविराज विश्व मोहन 🙏
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    42w
    Kusum Kothari's profile photo
    Kusum Kothari
    Moderator
    +1


    शबरी सी प्रतिक्षा, गृष्म के अवकाश पर बच्चों के घर आने की उम्मीद एक वृद्धा मां दादी का सारा मनोरथ। वाह रचना

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    42w
    Vishwa Mohan's profile photo
    Vishwa Mohan
    +Indira Gupta आभार!!!
    42w
    Vishwa Mohan's profile photo
    Vishwa Mohan
    +Kusum Kothari आभार!!!

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  3. Shubha Mehta: वाह!!बहुत सुंंदर ।
    Vishwa Mohan: आभार!!!

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