Tuesday 22 September 2015

और न लिखूंगा

मन को थोड़ा सिखला दूँगा
दुनियादारी दिखला दूँगा
आदर्शों में भटक गया तो 
पग यथार्थ पर फिसला दूँगा

बोलूँगा , मन पत्थर हो जा
प्रतिकूल घर्षण में सो जा
अनुकूलन का दर्पण न हो
पल भर को खुद में ही खो जा

साम दाम दंड भेद की दुनिया
सब कुछ जाली सब कुछ छलिया
दिग्भ्रम है समतल सपाट का
अंतस्थल में कपट कपाट-सा
छल-प्रपंच के माया-महल में
रंग रोग का अब न लीपूँगा
मिथ्या लेखन बहुत रचा अब

सोच लिया है और न लिखूंगा    

4 comments:

  1. Kusum Kothari: अतिसुन्दर!
    गहराई से उठते भाव क्षूब्ध मन बगावत करता सा, यथार्थ लेखन लिखते जाईये वर्ना सोचिए वाल्मीकि, वेद व्यास और तुलसीदास ऐसा सोच कलम छोड़ बैठते तो आज रामायण महाभारत रामचरित मानस होते?
    मन के द्वंद्व की सुंदर अभिव्यक्ति।
    शुभ संध्या।
    Vishwa Mohan: 'मन की बात' के लिए आपका मन से आभार!!!

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  2. अमित जैन 'मौलिक''s profile photo
    अमित जैन 'मौलिक'
    Owner
    मन को थोड़ा सिखला दूंगा
    दुनियादारी दिखला दुंगा
    सोच लिया है और न लिखूंगा।

    Wahhhhhh। बहुत बहुत बहुत मनमोहक कविवर। ख़ूब भालो। अप्रतिम

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  3. साम दाम दंड भेद की दुनिया
    सब कुछ जाली सब कुछ छलिया
    दिग्भ्रम है समतल सपाट का
    अंतस्थल में कपट कपाट-सा
    छल-प्रपंच के माया-महल में
    रंग रोग का अब न लीपूँगा
    मिथ्या लेखन बहुत रचा अब
    सोच लिया है और न लिखूंगा//////////
    वाह !!!!और सिर्फ वाह !!!!!

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